गुरुवार, 1 दिसंबर 2011


जानवरों की विशेषताओं का किरदार निभायेंगे कलाकार-राजेन्‍द्र गुप्‍ता

सब टीवी पर चिड़ियाघर के मुख्‍य पात्र से बातचीत
सोनी इंटरटेन्मेंट टीवी चैनल के अंतर्गत सब टीवी पर आगामी 28 नवम्‍बर से रात्रि‍ 9 बजे प्रसारित होने वाले धारावाहिक चिड़ियाघर ने आपने प्रोमों से ही दर्शको के बीच में उत्‍सुकता की लकीर खींच दी है। इस सीरियल को लेकर यह कयास लगाये जा रहे है कि चिड़ियाघर तो विभिन्‍न प्रकार के जानवरों के रहने की जगह होती है। फिर आखिर इंसानों पर आधारित इस चिड़ियाघर की क्‍या विशेषता रहेगी ??
हमारे पाठकों की इस उत्‍सुकता को हमने पहुंचाया इस धारावाहि‍क के मुख्‍य कलाकार राजेन्‍द्र गुप्‍ता के पास और उनसे इस धारावाहि‍क के कथानक से लेकर किरदारों की भूमिका तक पर आज 16 नवम्बर 2011 को दूरभाष पर लंबी बातचीत की । रंगमंच से लेकर टीवी सीरियलो व फिल्‍मों में अपने सशक्‍त अभिनय से धाक जमा लेने वाले अभिनेता राजेन्‍द्र गुप्‍ता ने इस प्रतिनि‍धि से बेबाकी से बातचीत की।
राजेन्द्र गुप्ता
चिड़ियाघर के शीर्षक पर बेहद रोचक अंदाज में उन्‍होंने बताया कि इस धारावाहिक में चिड़ियाघर वस्‍तुत: कोई जानवरो के रहने वाली जगह नहीं बल्कि सेवानिवृत्‍त प्राचार्य केशरीनारायण की धर्मपत्‍नी स्‍वर्गीय श्रीमती चिड़िया नारायण पर नामित घर है। श्री गुप्‍ता ने बताया कि केशरी नारायण की भूमिका का निर्वाह वे स्‍वयं कर रहे और इस धारावाहिक में दोनो पति-पत्‍नी को काफी प्रेम रहता है और उनका सपना रहता है कि उनका अपना एक घर हो। इस सपने के पूरा होने के पहले ही पत्‍नी का स्‍वर्गवास हो जाता है और स्‍मृति स्‍वरूप पत्‍नी के नाम पर चिड़ियाघर ही इस धारावहि‍क का शीर्षक है।
चिड़ियाघर के कथानक पर राजेन्‍द्र गुप्‍ता का कहना है कि अद्वितीय पारिवारिक कामेडी का यह सीरियल दर्शको तो गुदगुदायेगा ही साथ ही मानवीय मूल्‍यो,परिवार के सदस्‍यों के प्रेम-सदभाव एकजुटता का संदेश भी देगा। उनका मानना है कि हर जानवर का अपना एक स्‍वभाव,लक्षण व एक गुण होता है और उसकी इसी विशेषता को इंगित करते हुये पात्रों की भूमिका रखी गयी है। चिड़ियाघर के पात्रों के नाम जानवरों के नामों पर रखा गया है जैसे कि किशोरी नारायण,गोमुख,मयूरी,कोयल और ये सभी पात्रों का आचार-विचार-व्‍यवहार जानवरो के नामों के अनुसार रहेगा । इसी विशेषता को लेकर धारावाहिक अलग-अलग घटनाओं को लेकर आगे बढ़ेगा और प्रत्‍येक घटना पर लोकोक्तियों,मुहावरो व पंक्तियों के माध्‍यम से दर्शकों को शिक्षाप्रद संदेश दिया जायेगा ।

धारावाहिक के किरदारों को लेकर राजेन्‍द्र गुप्‍ता बेहद उत्‍साहित है और परिचयात्‍मक शैली किरदारों के बारे में उन्‍होंने बताया कि चिड़ियाघर के मुखिया केशरी नारायण यानि बाबूजी की भूमिका वे स्‍वयं निभा रहे है। यथा नाम तथा गुण के अनुरूप उनका व्‍यवहार केशरी यानि शेर की मानिंद है। परिवार के नेतृत्‍व की भावना लेकर चलने वाला यह किरादार बहुत आसानी से भ्रमित हो जाता है। गुस्‍सा होना,परिवार के मामलों में अंतिम अधिकार रखना उसका गुण है। धारावाहि‍क में वे अपनी स्‍वर्गीय पत्‍नी के चित्र से बात-करते जहां अतीत में चले जाते है, वही परिवार के हर सदस्‍य को खुश रहने का प्रयास उनके एक प्‍यारे चरित्र को प्रदर्शित करता है।

    श्री गुप्‍ता ने आगे बताया कि सीरियल में उनके बेटे घोतक और गोमुख में घोतक का किरदार परेश गांत्रा व गोमुख की भूमिका सुमित अरोडा निभा रहे है। घोतक या‍नि घोड़े पर सवार रहने वाला किरदार है। लगभग 10 वर्षा से टिकट कलेक्‍टर का काम करने वाले घोतक की स्थिति इस हद तक है कि ट्रेन की बर्थ के सामान उनका बिस्‍तर उसके ऊपर पुलिंग चेन,कंधी से धक्‍का मारने वाला पंखा और सुरक्षा संदेश जीवन का हिस्‍सा है। वही घोतक की पत्‍नी कोयल नारायण (शिल्‍पा शिंदे) एक अमीर घर से है और अपने विरासत की गौरव गाथा कहता यह किरदार गायन की शैली में बात करने की आदत रखती है।
    वहीं उनका बेटा गौमुख जैसा कि नाम से पता चलता है गाय के रूप में सरल है। वह एक है जो पूरे परिवार के लिए सब्जियां, दूध आदि खरीदता है। एक सख्‍त शिक्षक की भूमिका निभाने वाला यह किरदार अपनी पत्‍नी मयूरी (देबिना बोनर्जी) की प्रशन्सा दिन में कम से कम दस बार करता है। वहीं मयूरी का शौक नाचना व प्‍यार करना है। कुचि-पुडी से लेकर कथकली ही उसके लिए सब कुछ है। घोतक व गोमुख का छोटा भाई है कपि नारायण। यह किरदार आस-पड़ोस में कूद-फांद व पड़ोसी मेमना के लिये अंग्रेजी में प्रेम पत्र लिखने का कार्य करता है। जबकि मेमना के लिए अंग्रेजी पूरी तरह से समझ के बाहर है।
चाहे चंद्रकांता सीरियल के पंडित जगन्‍नाथ हो या फिर आस्‍कर नामित फिल्‍म लगान में चंपानेर के मुखिया का किरदार.. सभी भूमिकाओं में राजेन्‍द्र गुप्‍ता ने अपने अभिनय की गहरी छाप छोड़ी है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय की बारीकियां सीखने वाले राजेन्‍द्र गुप्‍ता अविभाजित मध्‍यप्रदेश के समय भारत भवन भोपाल,इंदौर के रंगमंच पर अभिनय कर चुके है तथा उनकी पत्‍नी वीणा गुप्‍ता उज्‍जैन से है। श्री गुप्‍ता ने अपनी बातचीत में कहा कि छत्‍तीसगढ़ आने की वे इच्‍छा रखते है और यहां की पृष्‍ठभूमि व उपलब्धियों से काफी प्रभावित है। उनका मानना है कि टीवी ने हर किरदार को घर-घर तक पहुंचाने मे सार्थक भूमिका का निर्वाह किया है और किरदार अपने नाम से भले ही ना जाना जाए अपने चेहरे से हर घर में नामी हो जाता है। अभिनय के लिए ट्रेनिंग को आवश्‍यक बताते हुए कहा कि इसके प्र‍शिक्षण से कलाकार अभिनय के तकनीकि पक्ष से भी रूबरू हो जाता है और इसका फायदा ही मिलता है।

    चिड़ियाघर के प्रचार प्रसार व शूटिंग के बारे में राजेन्‍द्र गुप्‍ता ने कहा कि टेलीविज़न पर इसकी झलकियां प्रारंभ हो गयी है। अपने चार दृश्‍यों की पहली शूटिंग के बाद उन्‍होंने लगभग शाम 4 बजे इस प्रतिनिधि से दूरभाष पर चर्चा करते हुए बताया कि गरिमा प्रोडक्‍शन के अंतर्गत श्री अश्वनी धीर द्वारा निर्मित व निर्देशित इस सीरियल को लेकर वे काफी उत्‍साहित है और पूरी टीम के साथ काम करने में काफी मजा आ रहा है। उन्‍होंने बताया कि इस सीरियल में किसी प्रकार की कोई खानदानी दुश्‍मनी,प्रतिस्‍पर्धा,ईर्ष्‍या आदि का प्रदर्शन नहीं किया जायेगा बल्कि घर-घर से जुड़ी पारिवारिक कहानियों को हास्‍यपूर्ण मनोरंजन के साथ प्रस्‍तुत किया जायेगा।


शुक्रवार, 29 जुलाई 2011


पं. बिरजू महाराज के जीवन से जुड़ी रोचक बाँते...
               
कोलकाता को माँ और मुंबई को पिता मानते है
महाराज जी ने कोलकाता से अपने सफलता के सफ़र की शुरुआत की और फिर मुंबई में काफ़ी आगे बढ़े। वह कोलकाता को अपनी माँ और मुंबई को अपना पिता कहते हैं। दिल्ली में रहने वाले महाराज़ दिल्ली को रिश्तेदार नहीं बल्कि अपना दोस्त कहते हैं।

कारों की चाल दुरुस्त करने का भी हुनर
बिरजू महाराज के पास सिर्फ नृत्य की ताल नहीं है वे कारों की चाल दुरुस्त करने का भी हुनर जानते हैं । कार की छोटी-मोटी खराबी को वे खुद ही ठीक कर लेते है। गाड़ी चलाने की बात करे तो अब वे लंबी ड्राइव नहीं कर पाते हैं। दरअसल रेड लाइट की वजह से उन्हे बार-बार रुकने में दिक्कत होती है।

बिरजू महाराज की बड़ी प्रशंसक हैं माधुरी
हिन्दी सिनेमा की धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित कथक गुरू पंडित बिरजू महाराज के नृत्य की बड़ी प्रशंसकों में से एक हैं। माधुरी के अनुसार बिरजू महाराज एक अद्भुतनर्तक हैं। गौरतलब है कि माधुरी दीक्षित हिंदी सिनेमा की उन गिनी-चुनी अभिनेत्रियों में शामिल हैं जिन्हें बिरजू महाराज से नृत्य सीखने का मौका मिला है। उल्लेखनीय है कि महाराज ने फिल्मकार संजय लीला भंसाली की फिल्म 'देवदास' के एक गीत 'काहे छेड़े मोहे.' की कोरियोग्राफी की थी और संगीत भी दिया है।

शनिवार, 16 जुलाई 2011

पं.बिरजू महाराज:कत्थक जिनके लिए नृत्य नहीं बल्कि साधना है...
 नगर निगम राजनांदगाँव के एपीआरओ सुनील अग्रहरि ने कत्थक सम्राट से उनके जीवन और उससे जुडे पहलूओं पर बातचीत की...राजनांदगाँव प्रवास पर आये कत्थक गुरू नर्तक एवम् शास्त्रीय गायक पंडित बिरजू महाराज के साक्षात्कार के अंश इस प्रकार हैं..

वातावरण में छाया हुआ अंधेरा धीरे-धीरे गहराता जा रहा था। आकाश में उजाले के साथ मधुर ध्वनि का नाद सुनाई दे रहा था। ध्वनि की आवाज क्रमश: तबले की आवाज में बदलने लगी। आवाज सुनकर मैं चौंक गया क्योंकि यह ताल तो मेरे पिताजी की प्रिय ताल थी। मैं हैरान सा इधर-उधर देख रहा था कि मेरे सामने सफेद चादर में लिपटी एक आकृति उभरने लगी। इस आकृति ने पास आकर मेरे पिता का रूप धारण कर लिया। पिताजी बैठे हुए तबला बजा रहे थे। मैं हैरान होकर देख रहा था कि पिताजी की तो मृत्यु हो गई है, यह कहां से आ गए ? तभी पिताजी की आवाज वातावरण में गूंजी। वह मुझसे कह रहे थे कि चल खडा हो जा। नृत्य के लिए तैयार हो, नृत्य कर। मैं यंत्रवत उनके आदेश का पालन कर रहा था। तभी अचानक मुझे चेतना आई और मैं सोचने लगा कि जो कुछ मैंने महसूस किया वह सपना था या हकीकत जिसमें मेरे पिता मेरा मार्गदर्शन कर रहे थे। यह आभास कुछ दिनों बाद फिर हुआ। मैंने देखा कि पिताजी कहीं जाने को तैयार हो रहे हैं। उनके हाथ में हमेशा एक छडी हुआ करती थी। तैयार होकर हाथ में छडी पकडी और मुझसे कहने लगे कि, चल तैयार हो, मेरे साथ चल। तेरा प्रोग्राम होना है। ऐसे ही एक दिन मैं चिंताग्रस्त होकर सोच रहा था कि अपने रियाज व परंपरा को आगे किस तरह बढाऊं। घर की स्थिति को देखते हुए मुझे नौकरी करनी पड रही थी। तभी लगा कि पिताजी मुझसे नौकरी छोडने के लिए कह रहे हैं। बस, उसी दिन ही मैंने नौकरी छोड दी और रियाज में जुट गया। स्वर्गीय पिता के आदेश का अनुकरण कर मेरे जीवन की दिशा ही बदल गई।
पद्म विभूषण से सम्मानित, जाने माने कत्थक गुरू नर्तक एवम् शास्त्रीय गायक पंडित बिरजू महाराज ने साक्षात्कार में अपने जीवन से जुड़ी बातों को लेकर चिर-परिचित अन्दाज़ में बेबाकी से बातचीत की। उन्होंने बताया कि उनके पिता श्री अच्छन महाराज कथक गुरु थे, अपने पुत्र के लिए भी उन्होंने यही सोच रखा था। लेकिन समय पर किसी का बस नहीं चलता। जब बिरजू महाराज केवल साढे नौ साल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनकी मां श्रीमती महादेई बेहद समझदार स्त्री थीं, उन्होंने पूर्वजों के गुणों, कला, परंपरा व ख्याति को अपने बच्चों को कहानियों में ढाल कर सुनाया। बिरजू महाराज को घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए चौदह वर्ष की उम्र में ही नौकरी करनी पडी। उनका कहना था, कि मुझे नौकरी तो करनी पडी पर पिताजी की इच्छा हमेशा याद आती इसीलिए मैंने उनके आदेश से नौकरी छोडी और अभ्यास करने लगा। कोलकता में मैंने पहला नृत्य प्रदर्शन किया और कभी पीछे मुड कर नहीं देखा। अपने पिता की उम्मीदों पर मैं खरा नहीं उतरता, यदि उनके आदेश का पालन कर नौकरी न छोडता। जब आपके लिए निर्णय लेना मुश्किल हो या आप पसोपेश में पडे हों ऐसे में किसी का मार्गदर्शन आपके लिए बहुत मायने रखता है।
पंडित बृजमोहन नाथ मिश्र से बिरजू महाराज के सफर पर उन्होंने बताया कि यह किस्सा तो मेरी पैदाइश से जुड़ा हुआ है। मेरा जन्म 4 फरवरी, 1938 को लखनऊ में हुआ था। अस्पताल के जिस कमरे में मेरा जन्म हुआ था, वहां मुझे छोड़कर सिर्फ लड़कियां ही पैदा हुई थीं। गोपियों के बीच अकेला बृजमोहन ही होता है, इसलिए मुझे यह नाम मिला। प्यार से लोग मुझे बिरजू कहते थे, बाद में मैं इसी नाम से प्रसिद्घ हो गया।
अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में चर्चा करते हुए पर उन्होंने बताया कि हम लोग लखनऊ के रहने वाले हैं, लेकिन बीते 47 वर्षो से मैं दिल्ली में रह रहा हूं। सात पीढि़यों से हमारा परिवार कथक को समर्पित रहा है। मैं तीन बहनों में अकेला भाई हूं। मेरे पिता और चाचा भी मशहूर कथक नर्तक थे। मैं अम्मा से सुना करता था कि हमारा खानदान बहुत अमीर था। घर में नौकर-चाकर, हाथी-घोड़े, तमाम सिपाही थे, लेकिन मैंने अमीरी नहीं देखी। जीवन के शुरुआती दौर में काफी संघर्ष किया है। मेरे पास एक रॉबिनहुड साइकिल थी। उसे मैंने आज भी बहुत संभालकर रखा है। जीवन में दुख न हो, तो सुख का अनुभव फीका लगता है। दुख झेलते हुए जब आदमी उससे बाहर आता है, तो आनंद की अनुभूति होती है।
बचपन में पतंग उड़ाने का शौक करने करने वाले बिरजू महाराज की नृत्य के प्रति आपकी रुचि कैसे जागृत हुई ? पर उन्होंने मुस्कराते हुए बताया कि 'तुम्हारे दादा को कथक नृत्य में पुरस्कारस्वरूप हाथी और चांदी के सिक्कों से भरी छह डोलियां मिली थीं', इस तरह की कहानियां लोग सुनाया करते थे। उन्हीं से मुझे प्रेरणा मिली कि मैं भी कुछ ऐसा करूं, जिससे परिवार का नाम रोशन हो सके। हमारे घर में 50 विद्यार्थी नृत्य सीखते थे। जब वे लोग तालीमखाने में रियाज करते, तो मैं वहा चला जाता और नृत्य देखा करता था। वहां से देखकर मैं रसोई में जाकर अम्मा को भी नाच के दिखाता और कहता था कि देखो अम्मा, मैंने नृत्य सीख लिया है। अम्मा कहतीं कि पहले बड़े तो हो जाओ, फिर नाचना। आज भी मैं इसको साधना और पूजा समझता हूं। यही नहीं हमारे यहां लखनवी तौर-तरीके की परंपरा को मैने तोड़ा और अपनी सबसे छोटी बेटी को नृत्य सिखाया है।
आज की फिल्मों में शास्त्रीय नृत्य को लेकर हो रहे प्रयोगों पर बेबाकी से अपना जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि पहले फिल्मों में नृत्य और गायन की बात ही अलग थी। आजकल शोर-शराबे के अलावा कुछ नहीं रह गया। शास्त्रीय नृत्य की आखिरी कड़ी माधुरी दीक्षित रही हैं। संजय लीला भंसाली की फिल्म देवदास में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया था। जब फिल्मों की बात चल निकली तो मैने उनके पसंदीदा हीरो-हीरोइन के बारे में भी पूछ लिया। उनका कहना था कि पहले मुझे वहीदा रहमान, मीना कुमारी, वैजयंती माला और कुमकुम अच्छी लगती थीं। लखनऊ में कुमकुम हमारे पड़ोस में रहती थी। बचपन में हम दोनों एक ही साथ खेलते थे और गाना भी सीखते थे। फिलहाल मुझे रानी मुखर्जी, काजल और माधुरी दीक्षित पसंद हैं। हीरो में अनिल कपूर और गोविंदा अच्छे लगते हैं। गोविंदा डांस अच्छा करते हैं।
कथक के अलावा अन्य रुचि पर उन्होंने कहा कि मैं सिंगर रहा हूं। पखावज, वायलिन और सितार भी बजाता हूं। बैले में भी काफी रुचि है। पेंटिंग भी करता हूं। पेंटिंग की बात से याद आया कि बचपन में कोयले से दीवारें गंदी करता था और अम्मा से खूब डांट खाता था। मैं कविता और ठुमरी भी लिखता हूं।
 कत्थक की प्रस्तुति के दौरान कोई मजेदार घटना  पर उन्होंने रोचक अन्दाज में बताया कि एक बार मैं अमेरिका गया था। वहां एक बहुत बड़े स्टेडियम में मुझे परफार्म करना था। स्टेडियम के चारों तरफ दर्शक बैठे हुए थे, इसलिए मुझे चारों तरफ घूमना पड़ता था। जब मैं बाईं तरफ घूमता, तब मेरे शिष्य बाईं तरफ घूम जाते थे और जब मैं दाईं तरफ घूमता, तो वे लोग दाईं तरफ घूम जाते थे। इससे मुझे हंसी भी आ रही थी। यह प्रोग्राम काफी सफल हुआ था।

शुक्रवार, 3 जून 2011

सच्ची बात

अगर आपकी आँख खूबसूरत हैं
तो आपको दुनिया अच्छी लगेगी..
लेकिन अगर आपकी ज़ुबाँ खूबसूरत हैं
तो आप दुनिया को अच्छे लगोगे...

सच्ची बात

अगर
दो दोस्तों के बीच कभी लड़ाई ना हो..
और सब कुछ सालों तक अच्छा चल रहा हो..
तो
समझ लेना कि...
एक दोस्त दिल से दोस्ती निभा रहा हैं !! और
दूसरा दिमाग
से......

सच्ची बात

जब जिन्दगी हँसाए तब समझना कि
अच्छे कर्मो का फल हैं.... और
जब जिन्दगी रुलाए तब समझना कि
अच्छे कर्म करने का वक्त आ गया हैं...

पहुना: पहुना

पहुना: पहुना